Wednesday, February 20, 2013

Kabhi khud khota, kabhi rab khota...!!

 

कुछ आहट तेरे जैसा सुनके ,
दिल मन ही मन मुसका देता ..
उस शाम ढले एक गोधुलि में,
तारों का दीप जला देता ..

उन तारों की जगमग से मैं,
एक खोयी रात सजा लेता ..
पर सुबह लगता , वो झिलमिल कर
खुद अपना दर्द मिटा लेता ..

 क्यों आते तारें नभ में जो,
जाना हर सुबहो उनको होता ..
मैं झेल गया हूँ कितने चेहरे ,
कौन है असली ,कौन मुखौटा ..

दिल की एक ख़ुशी की खातिर ,
कभी आंसू रोता, कभी नैना रोता ..
खूब भटकता तेरे पीछे ,
कभी खुद खोता , कभी रब खोता ..!!

--Ziddi Satya

2 comments:

  1. taro ko kho kar bhi, jo tu mann mein hi ujjwal hota,
    andhiyaare mein ho kar bhi, jo duje ko roshan karta,
    paa jata woh khushi lehar, jiske ke liye tera deh tarasta,
    na tu phir khud khota, na rab khota..!!

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