Tuesday, June 7, 2011

हो गया सफ़ल मैं जीवन में ...!!!

था राही मैं एक तनहा ,
या तनहा थी रह कन्ही..
जो चलने को चलना ही हो,
तो तनहाई ही , साथ सही..
























जब चलने को तैयार हुआ ,
तो उनका मिल जाना क्यों???
अगर नहीं था मिलने को ..
फिर फूलों का खिल जाना क्यों??




















आज मिला जो मंजिल को ,
तो उनका था साथ नहीं ...
ह्रदय बटें थे टुकरों में ,
फिर भी कोई आघात नहीं .




















बड़ा मधुर वो वक़्त रहा ,
जो निंदिया को सोते देखा..
पर अनुभव ये कटु बड़ा 
जो आंसू को रोते देखा...





















मुख तो अब भी बोल रहे ,
पर सुनने को आवाज़ नहीं..
हर राज़ दबा लूँ सिने में ,
पर छिपने की कोई राज़ नहीं..























है प्रेम भरा हर क्षण में ,
फिर एक क्षण पे टिक जाना क्यों ??
हो खुद का जीवन ही एक प्रेम ,
फिर दूजे पे मिट जाना क्यों ??




















है मुस्कानों का पेड़ खड़ा ,
बीजों को बोते देखा है ..
हो गया सफ़ल मैं जीवन में ,
जो प्रेम को होते देखा है.....!!!!





























--written one  year back . It became special for me. As during my campusing I used to recite this in HR-round ,(in TCS and  Xorient Solutions, fortunately/unfortunately I was selected in TCS but not in Xorient :p..) to show writing Hindi poems as one of my  hobby.


















hu hu huuuuuuuuu  :D !!!



2 comments:

  1. Ye bhi tumhare tarah hi non-stoppable hai!!!

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  2. I am really proud of you dear...
    tum itna accha ilkhte ho pata hi nahi tha
    ye wali bahot hi acchi hai
    aise hi likhte raho
    baad mein pata chalega yehi asli jeevan hai baaki sab mithya hai...
    aur publish karte raha karo

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