after so many years my dear papa wrote something... feeling glad to share it..:)
words , imagination, taste are still same as he wrote in 70's..
ललक तेरी ..तो मंजिल है हमेशा पास ही तेरा ..
ना साधन हो तुम्हारे पास ..
फिर भी नाज़ है तेरा..
रुकसद हर मुसीबत हो गया ,
यह देख ली मैंने ..कबायत की तेरी ,
तन्हाई तेरी..आग है तेरा..
ललक तेरी ..तो मंजिल है हमेशा पास ही तेरा ..

देख कर मैंने ..
सहादत है नहीं ये...ये मुसल्लम साज़ है तेरा ..
ललक तेरी ..तो मंजिल है हमेशा पास ही तेरा ..
Thank you Papa.jee.:)
--Satya